मेरे स्वर

Wednesday, April 26, 2006

कैसे कहुँ आज मैं, मेरा भारत महान

मेरा भारत महान,
मेरा भारत महान,
जो बोलते थकती  नहीं जुबांन,
क्या सच में हुआ उत्थान,
या हुआ कागज़ी काम,
और कहते रह गए हम,
मेरा भारत महान,
मेरा भारत महान।


कैसे कहूँ आज मैं, मेरा भारत महान,
हर चौराहे लुटा जहाँ, द्रौपदी का मान,
हर कोई हैं आज भी, हिन्दू या मुसलमान,
न मंदिरो का आदर, न मस्जिदो की शान,
हर गरीब के खून से बनते, बंगले आलिशान,
राष्ट्र-भाषी आज भी कहलाता मुर्ख महान,
धर्म, सत्य, अहिंसा, जहाँ सजाते सिर्फ दीवार,
भगत, शुभाष भी पूजे जाते साल में सिर्फ एक बार,
सच्चाई जहाँ नतमस्तक हो, लगाती सिर्फ गुहार,
राम कैद पड़े मंदिर में, रावण करते विहार,
कृष्ण-वाणी सुनने को, कहाँ कर्मयोगी पार्थ,
ना गुरु, ना शिष्य बना शिक्षा एक व्यापार, 
कैसे कहूँ आज मैं, मेरा भारत महान,
कैसे कहूँ आज मैं, मेरा भारत महान|


-- चेतन भादरीचा

फिर से जीना चाहता हूँ

उन यादों को,
उन लम्हों को,
मैं फिर  से दोहराना चाहता हूँ ,
वो चंद दिन फिर से जीना चाहता हूँ |

जब दिल  में न थी कोई ख्वाईश,

न जीने  में तमन्ना,
सारी दुनिया मेरी थी,
और मैं दुनिया का ,
वो एहसास फिर से महसूस करना चाहता हूँ ,

वो चंद दिन फिर से जीना चाहता हूँ |

जब हर शब्द में थी मासुमियत ,

न था द्वेष ईष्यॉ का सागर ,
न चिंता, न मुश्किलबस था खुशियों का सावन ,
उस बारिश में, मैं फिर से भीगना चाहता हूँ,
वो चंद दिन फिर से जीना चाहता हूँ |

जब हर विचार में थी सरलता,

और व्यवहार में चंचलता, 
दुश्मनी होती थी बस पलभर, 
और दोस्ती एक दास्तान,
जब दुःख देख दुसरों का ,
दिल अपना भर आता था,
वो ईश्वर स्वरूप फिर से पाना चाहता हूँ,
वो चंद दिन फिर से जीना चाहता हूँ |

-- चेतन भादरीचा