मेरे स्वर

Thursday, June 28, 2007

हम बडे confused है


कोई कहता देश तरक्की करता,
ऊँची मंिझलें आसमान छुटा,
कोई कहता ये सब झूठ है,
देश में दरीद्रता और भूख है,
हम कुछ तैय नहीं कर पातें,
हम बडे confused है |

पता नहीं क्या सही है,
क्या उत्तम क्या हीन है,
क्या गाँधी की अिहंसा में,
छूपी राम की रीत है,
या िफर बोस की जंग में ही,
कर्मयोग की नीव है,
िकसको माने पता नहीं है,
हम बडे confused है |

हर धर्म कहता, हम सच्चे है,
औरो के तो तर्क कच्चे है,
कोई िशला मंिदर की िदखाता,
कोई खंड़हर मिस्जद का बताता,
राम रहीम का फर्क न जानते,
हम बडे confused है |

हर कोई िसर्फ बाते करते,
सपनो की मालाएँ िपरोते,
राजा कोई भी बनता चाहे,
रंक हमेशा ही रोते,
ये अखंड़ सत्य हम जानते,
हम नहीं confused है |


-- चेतन भादरीचा

2 Comments:

  • nice one.!! dint knew u were a writer ..keep it up !! b/w r u really dat confused :))

    By Blogger Knu Singhal, at 5:46 PM  

  • बहुत बखूबी से पकडा है आपने हमारी पीढ़ी की दुविधा को :)

    By Blogger Puneet, at 10:26 PM  

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