मैं और मेरी तनहाई ...
मैं और मेरी तनहाई अक्सर ये बातें करते है,
के अगर िजवन का हर कंतक िनकल जाता,
तो िजवन क्या होता,
के राहे अगर फूलों से िबखरी होती,
तो हर खुशबु िकतनी िमठ्या थी,
के अगर तुम इस िजंदगी को नहीं नवाज़ती,
तो इस ईंद्रधनुष को पुर्ण कौन करता,
के इस तनहाई में तुम साथ होती,
तो ये तनहाईयाँ भी िकतनी खुबसुरत होती,
के हर राह जो चलती है,
वह राह तुम्हारी तरफ है,
के हर लम्हा एक एहसास,
और हर एहसास एक िजंदगी है,
मैं और मेरी तनहाई अक्सर ये बातें करते है ....
के अगर िजवन का हर कंतक िनकल जाता,
तो िजवन क्या होता,
के राहे अगर फूलों से िबखरी होती,
तो हर खुशबु िकतनी िमठ्या थी,
के अगर तुम इस िजंदगी को नहीं नवाज़ती,
तो इस ईंद्रधनुष को पुर्ण कौन करता,
के इस तनहाई में तुम साथ होती,
तो ये तनहाईयाँ भी िकतनी खुबसुरत होती,
के हर राह जो चलती है,
वह राह तुम्हारी तरफ है,
के हर लम्हा एक एहसास,
और हर एहसास एक िजंदगी है,
मैं और मेरी तनहाई अक्सर ये बातें करते है ....
-- चेतन भादरीचा
1 Comments:
aapaki kavita hamesha kisi shashvatata ki khoj mein jati hai . lekin yah shashvatata pseudo intellectual nahi hai, bal ki use piditonke prati apnepan ki bhavna ka adhishthan prapt hai.
yah nek dili kavi ki pratibha ko sada uttejeet karati rahe yahi shubhakamanayen.
(agar hindi bhasha ke prayog mein kuch galatiyan hui ho to kripaya sudhar de :) )
By
Anonymous, at 10:54 AM
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