मेरे स्वर

Wednesday, April 26, 2006

फिर से जीना चाहता हूँ

उन यादों को,
उन लम्हों को,
मैं फिर  से दोहराना चाहता हूँ ,
वो चंद दिन फिर से जीना चाहता हूँ |

जब दिल  में न थी कोई ख्वाईश,

न जीने  में तमन्ना,
सारी दुनिया मेरी थी,
और मैं दुनिया का ,
वो एहसास फिर से महसूस करना चाहता हूँ ,

वो चंद दिन फिर से जीना चाहता हूँ |

जब हर शब्द में थी मासुमियत ,

न था द्वेष ईष्यॉ का सागर ,
न चिंता, न मुश्किलबस था खुशियों का सावन ,
उस बारिश में, मैं फिर से भीगना चाहता हूँ,
वो चंद दिन फिर से जीना चाहता हूँ |

जब हर विचार में थी सरलता,

और व्यवहार में चंचलता, 
दुश्मनी होती थी बस पलभर, 
और दोस्ती एक दास्तान,
जब दुःख देख दुसरों का ,
दिल अपना भर आता था,
वो ईश्वर स्वरूप फिर से पाना चाहता हूँ,
वो चंद दिन फिर से जीना चाहता हूँ |

-- चेतन भादरीचा

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