रावण का परिवार
दशहरें की सुनहरी शाम थी,
सत्य की असत्य पर विजय मनाती,
राम नाम की जयकार थी,
उस त्योहार के उन्माद में,
चलें अपनी भतीजी के संग,
दिखाने उसको रावण वध,
उस दुष्ट पापी का शमन |
सत्य की असत्य पर विजय मनाती,
राम नाम की जयकार थी,
उस त्योहार के उन्माद में,
चलें अपनी भतीजी के संग,
दिखाने उसको रावण वध,
उस दुष्ट पापी का शमन |
भोले स्वर में उसने पूछा,
"कौन हैं यह पुतला ऊँचा,
महाकाय विशाल स्वरूप ले,
क्यों हैं वह आग में झुलसा |"
मैनें कहा,"पापों की करनी,
उसने सीता मैया हर ली,
फल उसका यूगो से भुगता,
हर साल उसका परिवार हैं जलता |"
उत्सुक होकर फिर वह बोली,
"कौन इसके परिवार की टोली,
'गर किया जाता प्रतिवर्ष शमित,
क्यों रहता वह नीत अमित ?
और राम अगर हैं अमर,
क्यों रहते यह पापी नर ?"
सोचते इस पर आवाज़ उठी उर,
कहती मुझसे बोली यह स्वर,
"अहंकार जिस मन में रहता,
इंद्रजीत का वह हैं भरता,
लालची औ' शक्ति-दुरुपयोगी,
वही कुंभकरण कलयुगी,
दुराचार जिस मन का हो अंश,
वही चलाते रावण का वंश |"
सुनते यही, नींद खुली फिर,
किंतु आवाज़, वही बोली फिर,
दो प्रश्नो में भेद बता गयी,
नन्ही लड़की वेद पढ़ा गयी,
जब तक मानव-मन में द्वेष सबल है,
रावण का परिवार अमर है,
रावण का परिवार अमर है |
-- चेतन भादरीचा