मेरे स्वर

Monday, April 21, 2008

वही रह जाते हैं ........

सूरज के आते ही, वह बेवफाई दिखला जाती हैं,
ओस तो उड जाती हैं, पत्ते वही रह जाते हैं

हर थके राही का सहारा बने वह खड़े हैं,
कारवां गुज़र जाते हैं, पेड वही रह जाते हैं

हर खुशबू पर पतंगा भवर करता हैं,
फूल तो मुरझा जाते हैं, डालियाँ वही रह जाती हैं

आँखों के दिए राह तकते बुझ जाते हैं,
मौसम बदल जाते हैं, यादें वही रह जाती हैं

जलाना तो, शमा की फिदरत हैं लेकिन,
परवाने जल जाते हैं, राख वही रह जाती हैं

कितने शब्द पीरोयेगा, तू चेतन,
गज़ले बदल जाती हैं, जज़्बात वही रह जाते हैं

- चेतन भादरीचा