मेरे स्वर

Tuesday, February 13, 2007

चािलस के उस पार

ना कुछ कम, ना कुछ ज्यादा,
इंिजिनयरींग की एक ही गाथा ,
पहुँचता जब वह खुश हो जाता,
चािलस के उस पार है जो जाता |

रात िदन है क्यो वह जागा,
बस पार करने एक ही बाधा ,
ब्रह्मानंद का धनी हो जाता,
चािलस के उस पार है जो जाता |

कोिशश है वह करता रहता,
जब तक इस पार है वह रहता,
कर्मयोग वह पूर्ण हो जाता,
चािलस के उस पार है जो जाता |

चारो ितर्थ की यात्रा करता,
गंगा में भी वह नहा लेता,
धन्यवाद में गुलाल उड़ाता ,
चािलस के उस पार है जो जाता |


-- चेतन भादरीचा