मेरे स्वर

Tuesday, October 15, 2013

कुछ मुकतक ....


जीने के हैं लाख तरीके, पर हमको बस एक आया,
प्यार में जिना, प्यार में मरना, हर पल बस येही गाया,
सुनी बहुत अलगाव की बातें, हमने हर मंदिर-मस्जिद,
हमने तो मदिरालय में भी, प्रेम राग ही गाया |

नाच रहा यह तन देखो, और नाच रहा यह मन देखो,
प्रेम राग की तान पे सारा, नाच रहा यह जग देखो,
जीती बहुत दौलत और शौहरत, इस दुनिया के मेले में,
प्रेम-सुधा में, बहकर हार में, होती अपनी जीत देखो |

चमक जिसमे महताब हैं ढूंढे, फिज़ा जिसमे हैं गंध खोजे,
उस प्रियतम का वर्णन क्या दू, धनुक जिसमे में रंग खोजे,
सुनी-पढ़ी श्रृंगार की बातें, हमने बहुत पोथी-पोथी,
मैं चाहू बस उस प्रियतम को, श्रृंगार जिसमे हैं रस खोजे |

कोई कहता यह दीवानापन, कोई कहता यह यौवन हैं,
प्रेम की इतनी परिभाषाएं, कोई कहता तन-मन-धन हैं,
पूछो मगर हर उस दिल से जो, डूबा हुआ इस दर्या में,
वह कहता सब बातें छोडो, प्रेम प्रिये यह जीवन हैं |

बन जोगन जो बन-बन फिरती, मीरा ऐसी दीवानी,
श्याम की सुधियों में जो रहती, राधा ऐसी मतवारी,
समय-दूरिया उसको मिथ्या, झूमे प्रेम की लय जो,
हर युग, हर आँगन समझती, देखो कबीरा की वाणी |


रब एक मान ले मेरा कहना, मत तोड़ इतने दिल दीवाने,
प्रेम-इबादत से चलती यह, दुनिया ओ रचनेवाले,
होगी क़यामत सबकी किसी दिन, आज मगर तू यह सुन ले,
जिस दिन टूटी सच्ची महोबात, उस दिन क़यामत तेरी हैं |

भूले यौवन, श्रृंगार भूले, भूले उस संग की होली,
भूले वचन सब, मधुबन भूले, भूले कुमकुम की रोली,
धुंधली करता वक़्त मरहम बन, उन यादो की बौछारे,
पर शाश्वत सिन्धु सम रहती, उसके नयनो की बोली |

राधा-किशन के गीत हैं गाती रहती दुनिया सारी हैं, 
मेल नहीं हैं इस गाथा में, विरह की प्रेम कहानी हैं,
इसीलिए दुनिया की रस्मे, तुझको करती दूर प्रिये,
विरह बिना पूर्ण न होती, कोई अमर कहानी हैं |

आँखें तेरी कुछ कहती हैं, होथ बयाँ कुछ और करे,
समझू इसको मैं पुरकारी, या मजबूरी बोल प्रिये,
तेरे तसव्वुर, फैसले तेरे, सब यह तेरी मनमानी,
मानी मैंने किन्तु सरल ना, दुनिया सारी मान प्रिये |

झूठ कहा था मैंने तुझको, केवल दो ही पल हैं प्रिये,
एक वो पल था तुझको पाया, खोया दूजे पल हैं प्रिये, 
झूठ लगे सब सच्ची बातें, इन दोनों के बीच तुझे,
सच समझी तूने क्यों, वह झूठी बातें बोल प्रिये |

चेतन भादरीचा 

Monday, January 24, 2011

फिर तेरा चेहरा देखा हैं ...

आज आँखों ने मेरी, फिर एक ख्वाब देखा हैं,
चमकते सितारों पर, एक गुलसितां देखा हैं,
वादियाँ तन्हां हैं, बदल घिरे हैं,
उनके बीच, आज फिर तेरा चेहरा देखा हैं |

खूबसूरती नहीं हैं मोहताज, चमकते सितारों की,
खिलती कलियों की, या महकती फिज़ाओं की,
मैंने सादगी ओढ़े, आँखें मिचकाते,
एक एहसास देखा हैं, आज फिर तेरा चेहरा देखा हैं |


इबादत समझाते आये हैं, ज़माने कबसे,
ढूंढते उसकी कुदरत को, पथरों में,
मैंने हलके से, मुस्कारते,
एक तरन्नुम में उसे देखा हैं, आज फिर तेरा चेहरा देखा हैं |

धाई आखर समझाती पोथियाँ क्यों,
जीने का ढंग दिखलाती पोथियाँ क्यों,
तेरी आँखों में डूब, मैंने,
जीने का अंदाज़ सिखा हैं, आज फिर तेरा चेहरा देखा हैं |

कोयल की कूक जो सुनती यारा,
नदिया जिस पीड़ में, बहती बन धारा,
उस संगीत को मैंने,
खामोशियों में सुना हैं, आज फिर तेरा चेहरा देखा हैं ... आज फिर तेरा चेहरा देखा हैं ...


- चेतन भादरीचा

Monday, September 14, 2009

रावण का परिवार

दशहरें की सुनहरी शाम थी,
सत्य की असत्य पर विजय मनाती,
राम नाम की जयकार थी,
उस त्योहार के उन्माद में,
चलें अपनी भतीजी के संग,
दिखाने उसको रावण वध,
उस दुष्ट पापी का शमन |

भोले स्वर में उसने पूछा,
"कौन हैं यह पुतला ऊँचा,
महाकाय विशाल स्वरूप ले,
क्यों हैं वह आग में झुलसा |"

मैनें कहा,"पापों की करनी,
उसने सीता मैया हर ली,
फल उसका यूगो से भुगता,
हर साल उसका परिवार हैं जलता |"

उत्सुक होकर फिर वह बोली,
"कौन इसके परिवार की टोली,
'गर किया जाता प्रतिवर्ष शमित,
क्यों रहता वह नीत अमित ?
और राम अगर हैं अमर,
क्यों रहते यह पापी नर ?"

सोचते इस पर आवाज़ उठी उर,
कहती मुझसे बोली यह स्वर,
"अहंकार जिस मन में रहता,
इंद्रजीत का वह हैं भरता,
लालची औ' शक्ति-दुरुपयोगी,
वही कुंभकरण कलयुगी,
दुराचार जिस मन का हो अंश,
वही चलाते रावण का वंश |"

सुनते यही, नींद खुली फिर,
किंतु आवाज़, वही बोली फिर,
दो प्रश्नो में भेद बता गयी,
नन्ही लड़की वेद पढ़ा गयी,
जब तक मानव-मन में द्वेष सबल है,
रावण का परिवार अमर है,
रावण का परिवार अमर है |

-- चेतन भादरीचा

Monday, April 21, 2008

वही रह जाते हैं ........

सूरज के आते ही, वह बेवफाई दिखला जाती हैं,
ओस तो उड जाती हैं, पत्ते वही रह जाते हैं

हर थके राही का सहारा बने वह खड़े हैं,
कारवां गुज़र जाते हैं, पेड वही रह जाते हैं

हर खुशबू पर पतंगा भवर करता हैं,
फूल तो मुरझा जाते हैं, डालियाँ वही रह जाती हैं

आँखों के दिए राह तकते बुझ जाते हैं,
मौसम बदल जाते हैं, यादें वही रह जाती हैं

जलाना तो, शमा की फिदरत हैं लेकिन,
परवाने जल जाते हैं, राख वही रह जाती हैं

कितने शब्द पीरोयेगा, तू चेतन,
गज़ले बदल जाती हैं, जज़्बात वही रह जाते हैं

- चेतन भादरीचा

Saturday, March 08, 2008

मैं और मेरी तनहाई ...

मैं और मेरी तनहाई अक्सर ये बातें करते है,

के अगर िजवन का हर कंतक िनकल जाता,
तो िजवन क्या होता,

के राहे अगर फूलों से िबखरी होती,
तो हर खुशबु िकतनी िमठ्या थी,

के अगर तुम इस िजंदगी को नहीं नवाज़ती,
तो इस ईंद्रधनुष को पुर्ण कौन करता,

के इस तनहाई में तुम साथ होती,
तो ये तनहाईयाँ भी िकतनी खुबसुरत होती,

के हर राह जो चलती है,
वह राह तुम्हारी तरफ है,


के हर लम्हा एक एहसास,
और हर एहसास एक िजंदगी है,


मैं और मेरी तनहाई अक्सर ये बातें करते है ....


-- चेतन भादरीचा

Wednesday, December 05, 2007

कभी िकसी को...

कभी िकसी को मुक्कमल जहान नहीं िमलता,
िकसी को जमीन, िकसी को आसमान नहीं िमलता,

इस खुडाई को हमने क्या समझा, और ये क्या िनकली,
यहाँ खुद को देखने के िलये आईना नहीं िमलता,

इस दुिनया में घुमें बहुत, और हमें,
इंसान से चेहरे बहुत िमले, पर इंसान नहीं िमलता,

दर्या, झरना िझल, समंदर, सब में डुबें आयें हैं,
पर तेरी आँखों की गहराईसा कहीं, सुकुन नहीं िमलता,

दुिनया के दस्तुर ने, रासतें अलग तो कर िदये,
पर तेरे िबन इस िजंदगी का, मक्सद नहीं िमलता,

कभी िकसी को मुक्कमल जहान नहीं िमलता,
िकसी को जमीन, िकसी को आसमान नहीं िमलता |


-- चेतन भादरीचा

Thursday, June 28, 2007

हम बडे confused है


कोई कहता देश तरक्की करता,
ऊँची मंिझलें आसमान छुटा,
कोई कहता ये सब झूठ है,
देश में दरीद्रता और भूख है,
हम कुछ तैय नहीं कर पातें,
हम बडे confused है |

पता नहीं क्या सही है,
क्या उत्तम क्या हीन है,
क्या गाँधी की अिहंसा में,
छूपी राम की रीत है,
या िफर बोस की जंग में ही,
कर्मयोग की नीव है,
िकसको माने पता नहीं है,
हम बडे confused है |

हर धर्म कहता, हम सच्चे है,
औरो के तो तर्क कच्चे है,
कोई िशला मंिदर की िदखाता,
कोई खंड़हर मिस्जद का बताता,
राम रहीम का फर्क न जानते,
हम बडे confused है |

हर कोई िसर्फ बाते करते,
सपनो की मालाएँ िपरोते,
राजा कोई भी बनता चाहे,
रंक हमेशा ही रोते,
ये अखंड़ सत्य हम जानते,
हम नहीं confused है |


-- चेतन भादरीचा